
बैतूल। जिले में खाद की किल्लत कम होने का नाम नहीं ले रही है। खेतों में बुवाई और फसलों की बढ़वार के इस समय किसानों को खाद की सख्त जरूरत है, लेकिन उन्हें घंटों नहीं बल्कि तीन-तीन दिन तक लाइन में लगने के बाद भी निराश होकर लौटना पड़ रहा है। सहकारी समितियों में खाद नहीं मिलने से परेशान किसान अब जिला मुख्यालय स्थित एमपी एग्रो केंद्र का रुख कर रहे हैं, जहां रोज सैकड़ों की संख्या में किसान लाइन लगाकर अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं।
सहकारी समितियों में नहीं मिल रही खाद
ग्रामीण अंचलों की सहकारी समितियों में कई दिनों से खाद की सप्लाई न होने से किसानों की परेशानी बढ़ गई है। कई किसान ट्रैक्टर, बाइक और यहां तक कि बैलगाड़ी लेकर भी समितियों और फिर मुख्यालय तक पहुंच रहे हैं। किसानों का कहना है कि जब खाद आती भी है, तो उसे सीमित मात्रा में ही बांटा जाता है, जिससे अधिकतर किसान वंचित रह जाते हैं।
एमपी एग्रो केंद्र पर रोज लग रही लंबी लाइनें
खाद की तलाश में अब किसान एमपी एग्रो के जिला मुख्यालय स्थित केंद्र पर पहुंच रहे हैं। यहां नगद बिक्री की सुविधा होने के कारण दूर-दूर से किसान आते हैं। सुबह से ही केंद्र के बाहर लंबी कतारें लग जाती हैं। हालांकि, यहां भी खाद सीमित मात्रा में ही दी जा रही है — प्रति एकड़ दो बोरी यूरिया और अन्य खाद एक-एक बोरी के हिसाब से।
रोजाना कई किसान घंटों इंतजार के बाद भी खाली हाथ लौट रहे हैं। किसानों का कहना है कि केंद्र पर स्टॉक सीमित होने के कारण उन्हें अगले दिन आने को कहा जाता है।
सिर्फ 5 फीसदी कोटा एमपी एग्रो को
सूत्रों के मुताबिक, जिले में आने वाले खाद के रैक का सिर्फ 5 फीसदी कोटा एमपी एग्रो को मिलता है, जबकि शेष खाद सहकारी समितियों को वितरण के लिए भेज दी जाती है। ऐसे में एमपी एग्रो केंद्र पर आने वाले किसानों की संख्या अधिक और आपूर्ति सीमित होने से यह स्थिति बन रही है।
किसानों में नाराजगी
किसानों ने कहा कि सीजन के समय पर्याप्त खाद न मिलने से फसलों की बढ़वार प्रभावित हो रही है। कई किसानों का कहना है कि प्रशासन को पहले से वितरण की ठोस व्यवस्था करनी चाहिए थी, ताकि किसानों को बार-बार लाइन में न लगना पड़े।
एमपी एग्रो प्रबंधक का वर्जन
एमपी एग्रो के जिला प्रबंधक दीना नाथ भिंडे ने बताया कि, “हमें जितना खाद मिलता है, उसे यहां आने वाले किसानों को वितरित किया जाता है। इसके लिए पंक्तियां लगाने की व्यवस्था है। संभवतः जो किसान देर से आते हैं, उन्हें खाद नहीं मिल पाता। हर किसान को समान रूप से खाद देने का प्रयास किया जा रहा है।”
