मुंबई। जिस तरह कुर्सी के लिए एनसीपी के अजित पवार ने चाचा शरद पवार का साथ छोड़ा, वैसा ही शरद पवार ने 45 साल पहले वसंतदादा पाटिल के साथ किया था. शरद पवार ने 40 विधायकों के साथ मिलकर महाराष्ट्र में वसंतदादा पाटिल की सरकार गिरा दी थी. 1999 में शरद पवार ने सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे पर कांग्रेस से राहें जुदा कर एनसीपी बनाई. 25 बरस तक शरद पवार ने पार्टी को अपने खून पसीने से सींचा. एनसीपी की महाराष्ट्र में वो हस्ती बनाई कि उसके बगैर सरकार बनाना मुमकिन नहीं था, लेकिन वही शरद पवार 2 जुलाई को भतीजे की बगावत के बाद इतने मजबूर हो गए कि उन्हें हाथ उठाकर कहना पड़ा कि मैं ही एनसीपी हूं. भतीजे की बगावत के बाद आलम ये है कि राजनीति के चाणक्य कहलाने वाले शरद पवार दरबदर हैं. एनसीपी के 53 विधायकों में 30 से अधिक अजित पवार के साथ हैं और करीब 16 उनके. 6 दशकों से अधिक की राजनीतिक तपस्या के बाद महाराष्ट्र में साहेब कहलाने वाले शरद पवार ने जिस राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को फर्श से अर्श तक पहुंचाया था वो अब उनकी है या नहीं- इसी पर सस्पेंस है. नियति का फेर और सियासत की कड़वी हकीकत देखिए कि जो मुंबई सीनियर पवार की राजनीति का सेंटर थी उसी मुंबई को छोड़कर उन्हें राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के लिए दिल्ली कूच करना पड़ा. आज की तारीख में सच्चाई तो यही है कि न पार्टी का नाम उनके पास है और न निशान. अब सवाल है कि क्या भतीजे को मुख्यमंत्री बनना था, इसलिए एनसीपी में बगावत हुई, क्या भतीजे अजित पवार को एनसीपी की कमान चाहिए थी, इसलिए बगावत हुई? ये सवाल राजनीति के सिक्के का एक पहलू है. ऐसा नहीं है कि अजित पवार ने बागी तेवर एकदम से अख्तियार किए हों. दरअसल एनसीपी में उनके साथ पिछले 3-4 साल में जो कुछ हो रहा था उसे वो सीने में दबाए बैठे थे. याद कीजिए साल 2019. महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद सरकार बनाने लायक आंकड़े किसी दल के पास नहीं थे. शिवसेना और बीजेपी के बीच मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर खींचतान थी. ऐसे वक्त, जब सरकार पर सस्पेंस कायम था अचानक अजित पवार उपमुख्यमंत्री और देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री की शपथ ले ली. उस समय भी कहा गया कि भतीजे ने सीनियर पवार से बगावत कर बीजेपी से हाथ मिला लिया है, लेकिन तब शरद पवार बाजीगर थे. उन्होंने 80 घंटे के भीतर खेल बदल दिया. फडणवीस सरकार धड़ाम हो गई. महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी अस्तित्व में आया. शिवसेना के उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में अघाड़ी सरकार बनी. अजित पवार चौथी बार उप मुख्यमंत्री बने. पवार परिवार में सब सामान्य था, लेकिन जानकार कहते हैं कि तब भी अजित पवार के मन में मुख्यमंत्री न बन पाने की कसक थी. सूत्र कहते हैं कि 2019 में अजित पवार का बीजेपी के साथ सरकार बनाना शरद पवार की स्क्रिप्टेड कहानी थी. कयास तो ऐसे भी लगे कि इस दफा भी परदे के पीछे शरद पवार ही खेल कर रहे हैं. इसके लिए दलीलें भी दी गई हैं. कहा गया कि अजित पवार, छगन भुजबल, प्रफुल्ल पटेल समेत एनसीपी के 6 मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं, और कभी भी केंद्रीय एजेंसी ईडी या सीबीआई, इनके खिलाफ एक्शन ले सकती है. वैसे, इस सियासी पतंगबाजी का सच क्या है, ये तो पता नहीं लेकिन एक हकीकत ये है कि अजित पवार की बगावत एपिसोड के बाद बीजेपी विरोधियों के निशाने पर है. जिनकी हाथ से सत्ता की डोर फिसली है उनकी तल्खी समझी जा सकती है, लेकिन एक सच ये है कि 64 साल के अजित पवार चाचा शरद पवार की तरह ही राजनीति के दांवपेच के माहिर रहे हैं. वो साल 2009 रहा हो या फिर 2014. चाचा के खिलाफ उनकी नाराजगी सरेआम हुई है. दोनों मौकों पर उन्होंने चाचा शरद पवार के फैसले का विरोध किया, लेकिन तब शरद पवार पावरफुल थे. उनकी उंगलियों की हरकत की तरह महाराष्ट्र की राजनीति भी इधर-उधर होती थी. उस वक्त भतीजे की हस्ती चाचा के बराबर नहीं थी, लेकिन अजित पवार वो भतीजे हैं जिन्होंने चाचा से ही सियासत का ककहरा सीखा है. अजित पवार ने भी करीब से देखा कि चाचा ने राजनीति की नब्ज़ कब और कैसे पकड़ी है. इस तरह, अजित पवार ने शरद पवार से जो कुछ सीखा वही वक्त पर आजमाया और आज कि तारीख में देश के सबसे बड़े पॉलिटिकल न्यूज मेकर हैं. समय का फेर है कि देश और महाराष्ट्र की राजनीति को उंगलियों पर नचाने वाले शरद पवार अब खुद महाराष्ट्र के शहर नाप रहे हैं. वो 83 बरस की उम्र में भतीजे के साथियों के गढ़ में हुंकार भरने पर मजबूर हैं. उनके सियासी करियर का शायद पहला मौका है जब उन्हें ये साबित करना पड़ रहा है कि जमीनी पकड़ बरकरार है.