जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर, सत्य और अहिंसा के अग्रदूत भगवान महावीर लगभग 2600 वर्ष पूर्व बिहार के कुंडग्राम नगर के राजा सिद्धार्थ व महारानी त्रिशला के यहां चैत्र शुक्ल त्रयोदशी के पावन दिवस पर अवतरित हुए।

इस पुण्यात्मा के अवतरित होते ही राजा सिद्धार्थ के राज्य, मान-प्रतिष्ठा, धन-धान्य में निरंतर वृद्धि होने लगी। इसी कारण राजकुमार का नाम वर्धमान रखा गया। वर्धमान बचपन से ही बड़े साहसी व निर्भीक थे और पराक्रम के कारण बालक वर्धमान महावीर के नाम से प्रसिद्ध हो गए।

Mahavir Jayanti 2022: राजकुमार वर्धमान युवावस्था में प्रवेश कर चुके थे लेकिन आपका मन सांसारिक कार्यों से विरक्त था। महल में रहते हुए आप अनासक्त योगी का जीवन व्यतीत कर रहे थे और एकांत समय में घंटों चिंतन में डूबे रहते। राजा सिद्धार्थ उनकी इस चिंतनशील प्रवृत्ति से डरते थे। फलत: कौशल नरेश समरवीर की सुपुत्री यशोदा के साथ आपकी शादी कर दी गई। आपके यहां एक पुत्री का जन्म हुआ जिसका नाम प्रियदर्शना रखा गया। 28 वर्ष की आयु में ही आपके माता-पिता का देहावसान हो गया। परिवार व प्रजा की ओर से अत्यधिक आग्रह करने पर भी आपने राजसिंहासन पर बैठना स्वीकार नहीं किया।

अपने ज्येष्ठ भ्राता नंदीवर्धन के आग्रह पर आपको दो वर्ष और घर में रुकना पड़ा। आप निरंतर चिंतन-मनन व ज्ञान ध्यान में अपना समय व्यतीत करते थे।

30 वर्ष की आयु में विशाल साम्राज्य को ठुकरा कर आप भिक्षु बन कर निर्जन वनों की ओर चल पड़े। साधना काल के दौरान कष्ट और विपत्तियां भी आपके मार्ग में अवरोध पैदा न कर सकीं। अंतत: साढ़े 12 वर्ष की कठोर साधना के परिणामस्वरूप वैशाख शुक्ल दशमी के दिन जृम्भक गांव के समीप बहने वाली ऋजु कूला नदी के तट पर आपको 'केवल ज्ञान' की प्राप्ति हुई जिसके प्रकाश से चारों दिशाएं आलोकित हो उठीं।

'केवल ज्ञान' की ज्योति पाकर भगवान महावीर ने भारत के धार्मिक व सामाजिक सुधार का निश्चय किया। भगवान महावीर का मूलमंत्र था 'स्वयं जीओ और दूसरों को जीने दो।'

नारी जाति के उद्धार के लिए आपने उन्हें समाज में समानता का अधिकार दिलाया। आपने स्पष्ट शब्दों में कहा था कि पुरुष ही मोक्ष का अधिकारी नहीं है बल्कि नारी भी अपने तप-त्याग व ज्ञान-आराधना से मोक्ष की अधिकारी बन सकती है इसीलिए आपने नारी को भी अपने संघ में दीक्षा प्रदान की। आपके संघ में 14,000 साधु व 36,000 साध्वियां थीं।

भगवान महावीर के अनुसार अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य व अपरिग्रह 5 जीवन सूत्र हैं जिनके आधार पर किसी भी राष्ट्र व समाज को सुखी व सम्पन्न बनाया जा सकता है। 30 वर्ष निरंतर जन कल्याण के लिए मगध, सिंध आदि दूर-दूराज प्रदेशों में घूम कर जनता को सत्य का संदेश देते रहे।

आपका अंतिम चातुर्मास पावापुरी में राजा हस्तिपाल की लेखशाला में हुआ। स्वाति नक्षत्र का योग चल रहा था। भगवान 16 प्रहर से निरंतर धर्म प्रवचन कर रहे थे और कार्तिक मास की अमावस्या को परिनिर्वाण को प्राप्त हो गए। आज भी भगवान महावीर का जीवन और सिद्धांत उपयोगी व जीवन को सुखमय बनाने में समर्थ हैं।