बैतूल में आदिवासियों ने किया नींद हराम आंदोलन,ढोल ढमाके बजाकर मांगे मानने की गुहार लगाई

बैतूल में बीती रात आदिवासियों ,ग्रामीणों ने अपनी मांगी को पूरा कराने अनूठा प्रदर्शन किया। उन्होंने कलेक्ट्रेट के पास ढोल ढमाके बजाकर नींद हराम आंदोलन किया। कई घंटे तक आदिवासी पुरुष महिलाएं यहां आदिवासी लोक गीत गाकर नृत्य करते रहे।। इस दौरान उनके कई गीत व्यवस्था पर चोट करते नजर आए।
आदिवासी समुदाय के लोगों ने एक अनूठा विरोध प्रदर्शन शुरू किया है। घोड़ाडोंगरी विधानसभा क्षेत्र के एक दर्जन से अधिक गांवों के आदिवासी कलेक्ट्रेट के सामने धरने पर बैठे हैं। उनकी मुख्य मांग है कि या तो उन्हें वन अधिकार कानून के तहत जमीन के पट्टे दिए जाएं और बुनियादी सुविधाएं दी जाएं, या फिर उन्हें गुलाम घोषित कर दिया जाए।
श्रमिक आदिवासी संगठन और समाजवादी जन परिषद के बैनर तले सैकड़ों ग्रामीण एकजुट हुए हैं। इनमें रैनी पाठी, मढ़का ढाना, सैंया गुड़ी, बोड़ रैय्यत और पीपल बर्रा समेत कई गांवों के लोग शामिल हैं। प्रदर्शनकारियों ने विरोध स्थल पर एक विचारोत्तेजक बैनर लगाया है जिस पर लिखा है - "अगर आजाद देश का कानून और कोर्ट का आदेश नहीं मानना है तो सरकार हम आदिवासियों को फिर से गुलाम घोषित कर दे।"
आंदोलन के नेता राजेंद्र गढ़वाल के अनुसार, इन आदिवासी परिवारों के पास पीढ़ियों से वन क्षेत्र की जमीनें हैं, लेकिन प्रशासन उन्हें अतिक्रमणकारी मान रहा है। बोड़ की भूरी यादव ने बताया कि बारिश के मौसम में उनका गांव पूरी तरह कट जाता है, क्योंकि पास की नदी में पुल नहीं है। इससे मरीजों और स्कूली बच्चों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है।
प्रदर्शनकारियों ने अनिश्चितकालीन धरने की घोषणा की है। उन्होंने शहर में रैली निकाली और रात में नींद हराम आंदोलन किया। कड़ाके की ठंड के बावजूद तादाद में करीब तीन सौ महिला पुरुष खुले आसमान के तले ही सोए।
प्रशासनिक अधिकारियों ने सोमवार उनसे चर्चा का प्रयास किया था।आदिवासी कलेक्ट्रेट भी पहुंचे थे।लेकिन उन्होंने कोई चर्चा नहीं की ।अधिकारियों को धरना स्थल पर आने का आमंत्रण दिया था।।
और अधिकारियों के आवास पर 'नींद हराम' आंदोलन करने की भी योजना बना रहे हैं। उनका कहना है कि जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं होतीं, वे अपना विरोध प्रदर्शन जारी रखेंगे।