बैतूल के पोलर मैंन प्रकाश नहीं रहे। अंटार्कटिका में 14 महीने की थी रिसर्च

बैतूल। अंटार्टिका में 14 महीने माइनस 55 डिग्री की ठंड में रहकर भूकंप पर रिसर्च करने वाले बैतूल के युवा वैज्ञानिक,प्रोफेसर प्रकाश खातरकर की बीती रात बीमारी के बाद मौत हो गई। 44 साल की छोटी उम्र में।इस युवा वैज्ञानिक ने भूकंप की सटीक भविष्यवाणी करने पर रिसर्च की थी।
पोलर मैंन के नाम से प्रसिद्ध हुए प्रकाश बैतूल के धाबला गांव के रहने वाले थे। उनकी आज तड़के टंग कैंसर के चलते मौत हो गई। उनका दाहसंस्कार आज दोहपर के बाद ताप्ती घाट धाबला (बिरूल बाजार) में किया जायेगा।
प्रकाश फिलहाल आठनेर के सरकारी कालेज में सहायक प्रोफेसर थे। उन्होंने बरकतुल्लाह यूनिवर्सिटी और अटल बिहारी बाजपेई विश्वविद्यालय में भी अध्यापन का कार्य किया था। उनके पिता रामा जी बारस्कर ढाबला के 10 साल सरपंच रहे।उनके एक भाई पॉलिटेक्निक कॉलेज बैतूल और दूसरे बैतूल में शिक्षक है।दो साल पहले ही उनकी शादी हुई थी।
प्रकाश के आंदोलन की वजह से कमलनाथ सरकार के समय 24 सौ अभ्यर्थियों को सहायक प्राध्यापक के लिए ज्वाइनिंग मिल सकी थी।इसके लिए उन्होंने इंदौर से भोपाल तक पैदल यात्रा की थी।
यह किया था रिसर्च
देश-विदेश में सबसे ज्यादा भूकंप की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं। समय पर भूकंप का सटीक अनुमान अब तक कोई नहीं बता पाया है। डॉ. प्रकाश खातरकर ने अंटार्कटिक महाद्वीप में जाकर शोध किया । डॉ. खातरकर ने शून्य से नीचे - 55 डिग्री तापमान में रहकर वैज्ञानिकों के साथ 14 महीने तक पृथ्वी के भू-गर्भ में होने वाली हलचल पर रिसर्च किया।
डॉ. खातरकर की थ्योरी बताती है कि पृथ्वी से ऊपर 550 किलोमीटर के क्षेत्र के आयन मंडल में बदलाव आने शुरू होते हैं। इससे इलेक्ट्रॉन कन्टेंट में बदलाव शुरू हो जाते हैं। जब ये बदलाव उच्चतर मान पर पहुंचते है. तो सिंधलेशन (भारी मात्रा में टीईसी का जमा होना) की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।