आजादी के 77 साल में भी ऐसी बदरंग तस्वीर ? प्रसूता को 7 किमी खटिया पर डालकर पहुंचाया अस्पताल

बैतूल । बैतूल जिले में अब भी कई गांव बारिश होते ही काला पानी बन जाते है। गांवों तक सड़क न होने से बीमारों और गर्भवती महिलाओ को अस्पताल पहुंचाना मुश्किल हो जाता है। ऐसी ही एक तस्वीर बैतूल के भीमपुर विकासखंड के चिल्लौर से सामने आई है।जहां एक प्रसूता को इलाज के लिए 7 किमी एक खटिया पर लादकर लाना पड़ा।जब कहीं एंबुलेंस मिल सकी। महिला की गांव में ही डिलीवरी हो गई थी।
मामला ग्राम पंचायत चिल्लौर के ग्राम भवई पुर का है। 950 की आबादी वाले इस गांव तक सड़क नही बन सकी है। जिसके चलते बारिश होते ही यह गांव पहुंच विहीन बन जाता है। गुरुवार भी ऐसा ही हुआ। यहां आदिवासी बिसन की पत्नी सोनाय बाई को प्रसव पीड़ा शुरू हुई तो अस्पताल ले जाने के लिए कोई साधन नहीं था। गांव की आशा कार्यकर्ता भी उस समय भीमपुर में थी।ऐसे में ग्रामीण महिलाओं ने किसी तरह सोनाए की प्रसूति कराई।लेकिन खून कम होने के कारण उसकी हालत नाजुक हो रही थी। गांव से मुख्य सड़क 7 किमी दूर है।ऐसे में परिजनों और गांव वालो ने प्रसूता और उसके जन्मे दो जुड़वा बच्चों को खटिया पर लादा और उसे लेकर 7 किमी की दूरी पैदल ही तय की। जिसके बाद मुख्य सड़क पर एंबुलेंस मिल सकी। जिसके बाद महिला को भीमपुर सीएचसी लाया गया। जहां एक दिन भर्ती रखने के बाद खून की कमी के चलते उसे जिला अस्पताल भेज दिया गया। जहां जच्चा और बच्चा तीनों को प्रसूति वार्ड में भर्ती कराया गया है। गांव में पक्की सड़क न होने के कारण पहले भी कई बार माताओं और बच्चों को जान गंवानी पड़ी है।
फेल हो गई नसबंदी
खास बात यह है की कोसाय बाई की पिछले नवम्बर महीने में ही नसबंदी की गई थी। लेकिन यह ऑपरेशन फेल हो गया।जिसके चलते वह दोबारा गर्भवती हो गई। कार्यकर्ता के मुताबिक महिला इस बीच मजदूरी के लिए बाहर चली गई थी।जब उसने लौटकर इसकी जानकारी दी। तो डॉक्टर को इसकी जानकारी दी गई।लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
सड़क स्वीकृत लेकिन टेंडर नही हुआ
जानकारी मिली है कि चिल्लौर से लेकर इस गांव तक यानी मेघनाथ ढाना तक 1 करोड़ 40 लाख रु की लागत की सड़क स्वीकृत कर दी गई है लेकिन इसका अब तक टेंडर नही हो सका है।जिसके कारण ग्रामीण अब भी परेशान हो रहे है।