The untouched aspects: मंत्री बने डीडी उइके के जीवन के अनछुए पहलू,जिसे नही जानते होंगे आप,जाने कहां करते थे मजदूरी

बैतूल। बैतूल लोकसभा क्षेत्र से दूसरी बार चुनाव जीतकर आए सांसद दुर्गादास उईके को मोदी मंत्री मंडल में राज्यमंत्री बनाया गया है।30 साल तक शिक्षक रहे डीडी को लेकर बहुत कम लोग जानते होंगे की उन्होंने अपना बचपन और जवानी बेहद अभाव में गुजारी ।। आइए जानते है उनसे।जुड़े कुछ अनछुए पहलू।
तीन रुपए की हफ्तावार मजदूरी से होते थे खुश
डीडी उईके की छोटी बहन सुमन सरयाम डीडी।के पक्के बाल।सखा गोपाल के साथ ब्याही है। वे पुराने दिनों की याद कर भावुक हो जाती है। उन्होंने।न्यूज पोर्टल खबरम को बताया की बहुत संघर्ष मय जीवन रहा। पिता गांव में टीचर थे।तब हम दो माह की छुट्टी।में गांव जाते थे। डीडी को काम करना बहुत पसंद था।वे मजदूरी।करने जाया करते थे।पिता की इसकी वजह से डांट भी।पड़ती थी। वे गन्ना पेराने की मजदूरी पर जाते थे। हफ्ते का दो।से तीन।रूपए मिलता था।तब मैं छोटी थी तो पीछे पीछे चली जाती थी। जब पैसे।मिलते थे तो।उनसे। फ्रॉक खरीदने का कहती थी। जिस दिन मजदूरी मिलती थी उस दिन हम बहुत खुश हो जाया करते थे । उस दिन वे मुझे सुबह से ही तैयार कर घर से बाजार ले जाते थे। हमारे पैरों में चप्पल भी नहीं होती थी।। जब पैर जला करते थे तो वह मुझे दौड़ लगाने का कहा करते थे और कहते थे की दौड़ कर जा और बबूल के पेड़ के नीचे बैठ जा । बाजार जाकर वह मुझे मिसल खिलाया करते थे ।वहां जाकर चप्पल खरीद दिया करते थेजब सांसद बने तो हमें भरोसा ही नहीं था कि ऐसा भी हो सकता है हमारी खुशी का कोई ठिकाना ही नहीं था। आज तो हम इतनी खुश हैं कि हमारे पास कहने के लिए शब्द भी नहीं है।
आधी रात को तैर कर करते थे नदी पार
डीडी उइके ने अपने बचपन के मित्र गोपाल को ही अपनी छोटी बहन के लिए वर के रूप में चुना था । उन्होंने एक दिन अचानक गोपाल को कहा कि मैं तुझे अपनी छोटी बहन से ब्याह रहा हूं। उस समय गोपाल को।पहली ही तनख्वाह मिली थी । इसी से उन्होंने डीडी की बहन सुमन से अपने। टीके का खर्च उठाया।। गोपाल सरयाम ने खबरम को बताया की कि डीडी का बचपन और जवानी के दिन बेहद अभाव भरे रहे। पिता चोहटा पोपटी में शिक्षक थे। बहुत कम तनख्वाह मिला करती थी। उसी में पूरे परिवार का गुजारा होता था। डीडी उस समय हॉस्टल में रहा करते थे ।जिसमें ₹60 रु प्रतिमाह खर्च के लिए मिला करते थे । डीडी उसमें से भी कुछ रुपए बचा लिया करते थे ताकि बचे हुए पैसे से बहनों के लिए कुछ खरीद सके । वह जब कई बार गांव जाते थे तो भीमपुर से चोहाटा तक 20 किलोमीटर की दूरी पैदल ही तय करना पड़ता था। रास्ते में पड़ने वाली बड़ी ताप्ती नदी को वे तैरकर पार किया करते थे।कई बार तो दो-दो बजे रात को उन्हें ऐसा करना पड़ता था। उनमें इतना गजब का साहस था कि उस समय जानवरों वाले घने जंगलों को भी वे निडर होकर पार किया करते थे और फिर नदी में छलांग लगाकर उसे तैर कर पार करते थे ।
पुलिस, प्रशासन, शिक्षा विभाग में।की नौकरी
यह बहुत कम लोग जानते होंगे की डीडी उइके ने केवल शिक्षा विभाग में ही नहीं बल्कि पुलिस और जनपद में भी नौकरी की थी । आमतौर पर डीडी को शिक्षक के तौर पर ही जाना जाता रहा है । 2019 से पहले वह आदिम जाति कल्याण विभाग में शिक्षक हुआ करते थे फिर वे शिक्षा विभाग में कार्यरत हो गए। लेकिन सबसे पहले उनकी नौकरी पुलिस विभाग में लगी थी। उन्होंने उज्जैन में आरक्षक के तौर पर 1 साल नौकरी भी की ।उसके बाद उन्होंने नौकरी छोड़ दी और वह भीमपुर ब्लॉक ऑफिस में लिपिक बन गए। लेकिन यह नौकरी भी उन्हें रास नहीं आई और उन्होंने इस नौकरी को छोड़कर शिक्षक की नौकरी ज्वाइन कर ली। तब से लेकर 2019 तक वे शिक्षक ही बने रहे।
भारी आवाज के कारण बने उद्घोषक
बैतूल जिला मुख्यालय पर आयोजित होने वाले राष्ट्रीय पर्वों पर उद्घोषक के रूप में डीडी को हमेशा याद किया जाता था। जब भी कोई आयोजन होता था डीडी को बतौर एनाउंसर खास तौर पर बुलाया जाता था। यही नहीं मंत्रियों मुख्यमंत्री के कार्यक्रम में भी मंच संचालन के लिए उनको ही जिम्मेदारी दी जाती थी। उनकी उत्कृष्ट हिंदी और बोलने की शैली उन्हें विशेष बनाती है। यही वजह है कि अक्सर उन्हें ही इन मौकों पर याद किया जाता था।।
पिछले पांच साल में जो काम छूटे अब पूरे करेंगे।
सांसद डीडी उइके की पत्नी ममता उईके ने खबरम को बताया की संभावित सूची में उनका नाम है। बहुत खुशी हो रही है।इन बीते पांच साल में बहुत खट्टी मीठी यादें रही।कुछ शिकवे शिकायत भी रहे। बहुत कुछ सीखने को भी मिला। बहुत सारे अनुभव हुए। वे बताते थे कोविड के कारण बहुत सारे काम नही हो पाए। इससे जनता की नाराजगी भी रही।लोगो की अपेक्षाएं भी थी की कुछ अच्छा काम करेंगे। अब मंत्री बन रहे है तो जो कमी थी वह पूरी हो जायेगी। ममता पुराने दिन याद कर भावुक हो जाते है। वे बताती है की
उन्होंने अपनी आधी से ज्यादा सैलरी समाज को समर्पित कर दी। शादी होकर आई तो वे यही कहते मिले कि समाज के लिए क्या अच्छा कर सकते है। कई बार आर्थिक संकट भी आते थे। आज देश की समृद्धि की कामना की। जो दायित्व दिया वह अच्छे से निभ जाए यह कामना की ।